Saturday 8 December 2012

एक और खुशखबरी मेरी कविता किताबों की दुनिया को बाल विकास प्रकाशन की ओर से स्कूल के पाठ्यक्रम के अन्तर्गत पहली से पाँचवीं कक्षा में लगाया गया है.प्रस्तुत है किताब का कवर पेज ................


खुशखबरी खुशखबरी खुशखबरी यह है वटवृक्ष पत्रिका के एक और एतिहासिक अंक का मुखपृष्ठ , यह अंक अभी प्रेस में है । नए साल में आप इसका दीदार कर पाएंगे । यह अंक हिन्दी समाज के 100 हस्ताक्षरों के साक्षात्कार पर केन्द्रित है । इस अंक का संयोजन संपादन करने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ है । पत्रिका के सम्पादक रविन्द्र प्रभात जी हैं.मुखपृष्ठ बनाया है अपराजिता कल्याणी ने


Sunday 2 December 2012

बेटियाँ पराया धन

बेटिया तो होती ही हैं धन पराया
राजा हों या रंक कोई न इसे रख पाया
बेटी -बेटे मे ये भेदभाव क्यों होता है?
बेटा अंश बढाता है, बेटी को पराया कहा जाता है
जिसको वो जानती तक नहीं,
उसी के साथ नाता जोड़ दिया जाता है
लालन -पालन और एक -सी शिक्षा -दीक्षा
फिर बेटी को ही क्यों देनी पड़ती है अग्नि -परीक्षा
जो एक पल भी नहीं होती आँखों से दूर
अचानक वो चली जाती है होकर मजबूर
कितना कठिन होता है
यूँ जिगर के टुकड़े को अपने से दूर कर देना
लाड-प्यार से पाली अपनी लाडली को
परायों के सपुर्द कर देना
माँ-बाप, भाई-बहन का प्यार छोड़कर
नए रिश्ते जोड़ लेती है पुराने तोड़कर
आँखों में
नए सपने ले चली जाती है नया संसार बसाने
बचपन की यादे भुलाकर
ससुराल के रिश्ते निभाने
बस फिर उसका ससुराल अपना हो जाता है
और मायका पराया
पति-बच्चों मे रमकर भूल जाती है
वो अपना पराया
हाय ये कैसी रीत, कोई भी इसे न जाना
किस बेदर्द ने बनाया ये दस्तूर पुराना

                     डॉ.प्रीत अरोड़ा